पर्दे से ख़त कहे

बहुत कोशिश चलाई गई, बार बार बयाँ होता रहा, आईने में देख कहा गया ,ऐसे ही कहे जायेंगे

निगाह मिलती जब सामने, तो पलको पे शर्म पर्दा कर देती, फिर कहेंगे, फिर कहंगे, बहाने से बहाना बनता गया, रुका रहा भीतर से भी, वक़्त चलता रहा 

पर्दा कर ,आखिर ख़त कह डाले, कर यकीं बहुत देर से दरवाजा भी बंद ना किया, अभी जवाब बनते होंगे,अभी जवाब रास्ते में होंगे, उम्मीद जोड़ बैठा रहा 

देखेंगे, ना जुबां बनी तो दोबारा पर्दा कर दूंगा, फिर ख़त, फिर दिल जुबां कर दूंगा

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